परिचय
कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत में उड़ीसा राज्य में जगन्नाथ पुरी से 35 किमी उत्तर-पूर्व में कोणार्क नामक शहर में प्रतिष्ठित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा सूर्य मन्दिरों में से एक है। सन् 1949 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। इस मन्दिर की भावनाओ को यंहा के पत्थरों पर किये गए उत्कृष्ट नकासी ही बता देता है।
Introduction
Konark Sun Temple is reputed in the city of Konark, 35 km northeast of Jagannath Puri in the state of Orissa in India. It is one of the few Sun temples of India. It was recognized by UNESCO as a World Heritage Site in 1949. This temple tells the feelings of the excellent Nakasi done on the stones here.
इतिहास
ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव ने 1250 CE में बनवाया था। यह मंदिर बहुत बडे रथ के आकार में बना हुआ है जिसमें कीमती धातुओं के पहिये, पिल्लर और दीवारे बनी हुई हैं। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है।
History
It is believed that this temple was built by Maharaja Narasimhadeva of the Eastern Ganga Empire in 1250 CE. The temple is built in the shape of a very large chariot with wheels of precious metals, pillars and walls. This temple has been conceived as the chariot of the sun
मंदिर के बारे में आश्चर्जनक बातें (amazing facts about Temple)
1. मंदिर का चुंबक (Temple Magnet)
इस मंदिर का एक और प्रमुख आकर्षण यहां मौजूद चुम्बक है। यहां मौजूद चुंबक पर भी कई रहस्य और किवदंतियां हैं । कई कथाओं के अनुसार, सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुम्बक पत्थर लगा है। इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले सागरपोत, इस ओर खिंचे चले आते है, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती है। अन्य कथा अनुसार, इस पत्थर के कारण पोतों के चुम्बकीय दिशा निरुपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते।इस कारण अपने पोतों को बचाने हेतु, मुस्लिम नाविक इस पत्थर को निकाल ले गये। यह पत्थर एक केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया, और परिणामतः वे गिर पड़ीं। परन्तु इस घटना का कोई एतिहासिक विवरण नहीं मिलता, ना ही ऐसे किसी चुम्बकीय केन्द्रीय पत्थर के अस्तित्व का कोई ब्यौरा उपलब्ध है।
Another major attraction of this temple is the magnet present here. There are also many mysteries and legends on the magnet present here. According to several legends, a magnet is placed on the summit of the Sun Temple. As a result of this, the ocean vessels passing through the sea of Konark are drawn towards this, causing heavy damage to them. According to another legend, because of this stone the magnetic direction design of the ships does not show the right direction. Due to this, Muslim sailors took out this stone to save their ships. This stone was acting as a central stone, whereby all the stones in the temple walls were in balance. Due to its removal, the balance of the temple walls was lost, and as a result they collapsed. But there is no historical description of this incident, nor is there any description of the existence of any such magnetic central stone.
2.कामुक दृश्य (Erotic scene)
कोणार्क का सूर्य मंदिर कामुकता को एक नयी परिभाषा देता है। यहां बनी मूर्तियों में बड़ी ही खूबसूरती के साथ काम और सेक्स को दर्शाया गया है। यहां बनी मूर्तियां पूर्ण रूप से यौन सुख का आनंद लेती दिखाई गयी हैं। मजे की बात ये है कि इन मूर्तियों को मंदिर के बाहर तक ही सीमित किया गया है ऐसा करने के पीछे कारण ये बताया जाता है कि जब भी कोई मंदिर के गर्भ गृह में जाए तो वो सभी प्रकार के सांसारिक सुखों और मोह माया को मंदिर के बाहर ही छोड़ के आये।
The Sun Temple of Konark gives a new definition to sexuality. The sculptures made here depict work and sex with great beauty. The sculptures here are shown to enjoy sexual pleasure to the fullest. The interesting thing is that these idols are confined outside the temple, the reason behind doing this is that whenever someone goes to the sanctum sanctorum of the temple, then they will be able to give all kinds of worldly pleasures and fascination to the temple. Came out only.
3.पौराणिक महत्व (Mythological significance)
यह मंदिर सूर्यदेव (अर्क) को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिये सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की, और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसका रोग भी अन्त किया।
The temple was dedicated to Suryadev (Ark), who the locals called Biranchi-Narayan. According to the Puranas, Lord Krishna's son Samb had developed leprosy from the curse. He was advised by the sage Cuttack to worship the sun god to avoid this curse. Samb did penance for twelve years at Konark, at the ocean confluence of the Chandrabhaga river at Mitravan, and pleased the sun god. Suryadev, who was the destroyer of all diseases, also ended its disease.
4. क्यों नहीं होती मंदिर की पूजा? (Why is the temple not worshiped?)
कहा जाता है की मंदिर के प्रमुख वास्तुकार के पुत्र ने राजा द्वारा उसके पिता के बाद इस निर्माणाधीन मंदिर के अंदर ही आत्महत्या कर ली जिससे बाद से इस मंदिर में पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
It is said that the son of the chief architect of the temple committed suicide by the king after his father inside this under construction temple, which has since banned the worship or any religious ritual in this temple.
5. आज भी करती हैं नर्तिकाय नृत्य (Even today, dancers dance)
कोणार्क के बारे में एक मिथक और भी है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की माने तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहाँ यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थी।
There is another myth about Konark that the spirits of dancers still come here today. If old people of Konark were to be believed, even today, in the evening you will hear the chimes of those pilots who once danced here in the court of the king.
6. विलुप्त होती नदी के मिले साक्ष्य (Evidence of extinct river)
वक्त के साथ तमाम भौगोलिक और प्राकृतिक घटनाओं के चलते चंद्रभागा नदी विलुप्त हो गई थी। वर्ष 2016 में वैज्ञानिकों ने इस मंदिर क्षेत्र से इस नदी के साक्ष्य खोज निकाले। वैज्ञानिकों ने विभिन्न उपग्रहों की तस्वीरों का इस्तेमाल किया और फिर नदी की धारा की पहचान करने और उसका मार्ग पता लगाने के लिए अन्य क्षेत्रीय आंकड़ों का इस्तेमाल किया।
Over time, the Chandrabhaga River became extinct due to all geographical and natural phenomena. In the year 2016, scientists discovered evidence of this river from this temple area. The scientists used photographs of various satellites and then used other regional data to identify and trace the stream of the river.
आखिर क्यों ध्वस्त हुआ ये मंदिर (Why this temple was destroyed after all)
वास्तु दोष
कहा जाता है कि यह मन्दिर अपने वास्तु दोषों के कारण मात्र 400 वर्षों में क्षीण हो गया था। जिसे वास्तु कला व नियमों के विरुद्ध कहा-सुना जाता है। इसी कारणवश यह अपनी समयावधि से पहले ही ऋगवेदकाल एवम् पाषाण कला का अनुपम उदाहरण होते हुए भी धराशायी हो गया।इस सूर्य-मन्दिर के मुख्य वास्तु दोष हैं:-
- मंदिर का निर्माण रथ आकृति होने से पूर्व, दिशा, एवं आग्नेय एवं ईशान कोण खंडित हो गए।
- पूर्व से देखने पर पता लगता है, कि ईशान एवं आग्नेय कोणों को काटकर यह वायव्य एवं नैऋर्त्य कोणों की ओर बढ़ गया है।
- प्रधान मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने नृत्यशाला है, जिससे पूर्वी द्वार अवरोधित होने के कारण अनुपयोगी सिद्ध होता है।
- नैऋर्त्य कोण में छायादेवी के मंदिर की नींव प्रधानालय से अपेक्षाकृत नीची है। उससे नैऋर्त्य भाग में मायादेवी का मंदिर और नीचा है।
- आग्नेय क्षेत्र में विशाल कुआं स्थित है।
- दक्षिण एवं पूर्व दिशाओं में विशाल द्वार हैं, जिस कारण मंदिर का वैभव एवं ख्याति क्षीण हो गई हैं।
Vastu faults
It is said that this temple was dilapidated in only 400 years due to its architectural defects. Which is heard and heard against Vastu art and rules. For this reason, even before its time period, it collapsed despite being a unique example of Rig Veda period and stone art. The main architectural defects of this Sun-temple are: -
- The construction of the temple before the chariot shape, the direction, and the igneous and northerly angles were fragmented.
- Looking at it from the east, it is found that by cutting the northerly and igneous angles, it has moved towards the western and western angles.
- There is a dance hall in front of the eastern gate of the Pradhan Mandir, which proves unusable due to the eastern gate being blocked.
- The foundation of the temple of Chhayadevi at the Nairitya angle is comparatively lower than the Principal. In the lower part of it is Mayadevi's temple and lower.
- A huge well is located in the Igneous region.
- There are huge gates in the south and east directions, due to which the glory and fame of the temple has diminished.
चुम्बकीय पत्थर
कई कथाओं के अनुसार, सूर्य मन्दिर के शिखर पर एक चुम्बकीय पत्थर लगा है। इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले सागरपोत, इस ओर खिंचे चले आते हैं, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती है। अन्य कथा अनुसार, इस पत्थर के कारण पोतों के चुम्बकीय दिशा निरूपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते। इस कारण अपने पोतों को बचाने हेतु, मुस्लिम नाविक इस पत्थर को निकाल ले गये। यह पत्थर एक केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और परिणामतः वे गिर पड़ीं। परन्तु इस घटना का कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता, ना ही ऐसे किसी चुम्बकीय केन्द्रीय पत्थर के अस्तित्व का कोई ब्यौरा उपलब्ध है।
Magnetic stone
According to many legends, a magnetic stone is placed on the summit of the Sun Temple. As a result of this, the ocean ships passing through the sea of Konark are drawn towards it, causing them heavy damage. According to another legend, due to this stone, magnetic direction formulation devices of ships do not tell the right direction. For this reason, Muslim sailors took out this stone to save their grandsons. This stone was acting as a central stone, whereby all the stones in the temple walls were in balance. Due to its removal, the balance of the temple walls was lost and as a result they collapsed. But no historical details of this incident are available, nor is there any description of the existence of any such magnetic central stone.
कालापहाड़ (Black mountain)
कोणार्क मंदिर के गिरने से संबंधी एक अति महत्वपूर्ण सिद्धांत, कालापहाड से जुड़ा है। उड़ीसा के इतिहास के अनुसार कालापहाड़ ने सन 1508 में यहां आक्रमण किया, और कोणार्क मंदिर समेत उड़ीसा के कई हिन्दू मंदिर ध्वस्त कर दिये।
A very important theory related to the fall of Konark temple is associated with Kalapahad. According to the history of Orissa, Kalapahad invaded here in 1508, and destroyed many Hindu temples of Orissa including Konark temple.
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मदन पंजी बताते हैं, कि कैसे कालापहाड़ ने उड़ीसा पर हमला किया। कोणार्क मंदिर सहित उसने अधिकांश हिन्दू मंदिरों की प्रतिमाएं भी ध्वस्त करीं।
Madan Panji of the Jagannath temple in Puri tells how Kalapahar attacked Orissa. He also demolished the statues of most Hindu temples, including the Konark temple.
हालांकि कोणार्क मंदिर की 20-25 फीट मोटी दीवारों को तोड़ना असम्भव था, उसने किसी प्रकार से दधिनौति (मेहराब की शिला) को हिलाने का प्रयोजन कर लिया, जो कि इस मंदिर के गिरने का कारण बना।
Although it was impossible to break the 20-25 feet thick walls of the Konark temple, he somehow managed to move the Dadhinauti (arch stone), which caused the temple to collapse.
दधिनौति के हटने के कारण ही मंदिर धीरे-धीरे गिरने लगा, और मंदिर की छत से भारी पत्थर गिरने से, मूकशाला की छत भी ध्वस्त हो गयी। उसने यहां की अधिकांश मूर्तियां और कोणार्क के अन्य कई मंदिर भी ध्वस्त कर दिये।
Due to the removal of Dadhinauti, the temple began to fall slowly, and the roof of the silent hall was also demolished due to heavy stone falling from the roof of the temple. He also demolished most of the sculptures here and many other temples in Konark.
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